11 मार्च 1689
एक अंधेरी रात… लेकिन इतिहास के पन्नों में यह रात सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि जलती हुई मशाल बन गई।
एक ऐसी मशाल, जो वीरता, बलिदान और अटूट संकल्प की गाथा कहती है।
यह रात छत्रपती संभाजी महाराज की आखिरी रात थी…
एक ऐसी रात, जिसने पूरे हिंदुस्तान को हिला कर रख दिया!”
21 दिन उनके शरीर के साथ हाल-हाल करने के बाद.
हफ़ीसियो ने बेड़ियों मै जकडे संभाजी महाराज को औरंगजेब के सामने दाखिल किया.
उस वक्त संभाजी महाराज का शरीर खून से लथपथ था. उनके शरीर पर ऐसी एक भी जगह नहीं बची थी जहां घाव नही हुआ हो.
लेकिन उनका सिर अभी भी ऊँचा था.
आँखों में न डर था, नहीं मृत्यु का भय था..
उन्हें साफ साफ पता था कि सुबह उनके साथ क्या होने वाला है…
उन्हें पता था कि उनकी साँसें अब बस कुछ ही क्षणों की मेहमान हैं…
लेकिन उन्होंने आखिरी सास तक औरंगजेब के सामने घुटने नहीं टेके?
न ही उन्होंने दया की अपने जीवन की भीख औरंगजेब से माँगी?
शंभू राजे का हर शब्द, हर सांस, और शरीर का हर कतरा… हिन्दवी स्वराज्य की शान में समर्पित था!”
औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के इस छावा को तोड़ने के लिए हर हद पार कर दी।
यहां तक कि जलती हुवी सलाखोसे उनकी आँखें निकालने का हुक्म Aurangzeb ने दिया…
और ये काफ़िर इसके बाद भी नहीं झुकता है.
तो इसके शरीर के टुकड़े टुकड़े करके, भीमा नदि मै मच्छीली यो को डाल दो. और इसका सर धड़ से अलग करके भाले के नोक पर लगा के सारे नगर में इसके सर को घुमाओ. ताकि फिर कोई काफ़िर संभा पैदा ना हो. फिर कोई मराठा मुगल सल्तनत के खिलाफ जाने की जुर्रत नहीं करे.
तभी संभाजी महाराज जोर से दहाड़े.
औरंग तू चाहे क्रूरता की सारे हदे पार कर ले.
लेकिन यह संभा नहीं झुकेगा. ना कभी खत्म होगा.
तू चाहे जितने जुल्म करले,
मेरे खून के हर एक कतरे से हजार संभा पैदा होंगे. और तुझे इसी मिट्टी में गाढ़ के रहेंगे.
हर हर महादेव…
दोस्तो
उस दिन औरंग ने क्रूरता की हर सीमा पार कर दी थी… लेकिन संभाजी महाराज ने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया.
कहा जाता है कि उस आखिरी रात… संभाजी महाराज ने अपनी आँखें बंद कीं… और शिवाजी महाराज की छवि को अपने मन में बसा लिया।
संभाजी महाराज ने अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मरण किया…
और खुद से कहा.
आबासाहेब मै मृत्यु से नहीं डरता, क्योंकि मैं जानता हु. मै सत्य की राह पर हूँ. और मुझे याद है. अपने मुझे बचपन मै कहा था. कि संभा सत्य परेशान हो सकता है लेकिन कभी पराजित नहीं.
उनके आखिरी वक्त मै.
उनके होंठों पर स्वराज का सपना और दिल में एक अटूट विश्वास था!”
उस रात औरंगजेब ने अपने सामने एक निडर योद्धा को देखा…
एक ऐसा योद्धा, जिसने अपनी जान तो दे दी… लेकिन अपनी आन, बान और शान से कभी समझौता नहीं किया!
उस रात संभाजी महाराज का बलिदान व्यर्थ नहीं गया!
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य ने और भी जोश और जुनून के साथ इस अन्याय का जवाब दिया!
संभाजी महाराज का बलिदान उस चिंगारी की तरह था… जिसने पूरे हिंदुस्तान को जगा दिया!”
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठों ने औरंगजेब की सल्तनत का बहुत बुरा हाल किया.
और आखिर कार.
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में इसी धरती पर हुई थी.
दोस्तो दरसल
संभाजी महाराज सिर्फ एक नाम नहीं है…
एक विचार हैं!
एक ज्वाला हैं!
जो आज भी हर उस दिल में जलती है, जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है!
आज भी उनकी कहानी हमें हिम्मत और हौसला देती है!
जय भवानी…! जय शिवाजी…!”
हर हर महादेव…!
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संभाजी महाराज की आखिरी रात | वीरता की अमर गाथा
Har har Mahadev
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