“दोस्तो क्या आप जानते हैं कि गंगा, जिसे हम आज पवित्र नदी मानते हैं, कभी पृथ्वी पर थी ही नहीं?
तो फिर यह पृथ्वी पर कैसे आई?
इसका जवाब छिपा है एक राजा की अथक तपस्या और उसके महान प्रयत्नों में…”
“हजारों वर्ष पहले, अयोध्या के राजा सगर के 60,000 पुत्र थे। एक दिन, उन्होंने एक महान अश्वमेध यज्ञ शुरू किया, लेकिन यज्ञ का घोड़ा अचानक गायब हो गया।” और
घोड़ा खोजते-खोजते वे जब महर्षि कपिल के आश्रम में पहुंचे । तो वहां घोड़ा बंधा हुआ देखकर उन्होंने कपिल ऋषि पर ही चोरी का आरोप लगा दिया।”
इस अपमान से क्रोधित होकर, कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को अपने श्राप से भस्म कर दिया। लेकिन उनकी आत्माएं मुक्त नहीं हो सकीं, क्योंकि उनकी मुक्ति के लिए गंगा के जल से तर्पण आवश्यक था।”
सगर के वंशज राजा भगीरथ ने निश्चय किया कि वे अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति दिलाएंगे।”
भगीरथ ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए।
ब्रह्मा जी ने कहा – ‘गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सकता है, लेकिन उसके वेग को कौन संभालेगा? वह इतनी प्रचंड है कि पृथ्वी उसका भार सहन नहीं कर सकती।'”
“भगीरथ ने शिवजी की तपस्या शुरू की, ताकि वे गंगा के वेग को रोक सकें।”
“शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में समा लिया और जब भगीरथ ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपनी एक जटा खोलकर गंगा को धीरे-धीरे पृथ्वी पर प्रवाहित किया।”
गंगा ने भगीरथ के पीछे-पीछे बहते हुए कई स्थानों पर धरती को पवित्र किया और अंत में कपिल मुनि के आश्रम तक पहुँची।
“गंगाजल के स्पर्श से सगर पुत्रों की आत्माएं मोक्ष को प्राप्त हुईं। भगीरथ का कठिन तप सफल हुआ और इसी कारण गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है।”
आज भी गंगा को मोक्षदायिनी कहा जाता है, क्योंकि वह न केवल पृथ्वी की प्यास बुझाती है, बल्कि आत्माओं को भी शुद्ध करती है।”
“इस कहानी से हमें एक बड़ी सीख मिलती है – अगर हमारा संकल्प मजबूत हो और हम अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हों, तो कुछ भी असंभव नहीं होता |
“भगीरथ ने जो किया, वही आज भी हर संघर्षशील इंसान कर सकता है. धैर्य, तप और अथक प्रयासों से असंभव को संभव बनाया जा सकता है!”
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